sita vanvaas
सीता! शोक भुला दे मन का
बोले उठ वशिष्ठ–‘ बेटी ! स्वागत कर इस शुभ क्षण का
“पीड़ा में तपकर ज्यों कंचन
तूने किये युगल कुल पावन
फिर से सजा अवध-सिंहासन
आँसू पोंछ नयन का
‘भोग नहीं, तप, त्याग, तितिक्षा
दुख ही है जीवन की दीक्षा
पुत्री! तू दे चुकी परीक्षा
वास छोड़ अब वन का
‘जननी, जनक, सास, पति, देवर
लेने. आये पुर-नारी-नर
आ बेटी! आ जा अपने घर
मान कहा गुरु-जन का’
‘सीता। शोक भुला दे मन का
बोले उठ वशिष्ठ–‘ बेटी ! स्वागत कर इस शुभ क्षण का