sita vanvaas

बाल-क्रीड़ा जब लव-कुश करते
स्वामी की सुधि कर स्रीता के नयन अश्रु से भरते

कभी बालि-सुग्रीव वेश धर
मल्लयुद्ध में भिड़े परस्पर
सुनते ही माँ का अधीर स्वर

आते डरते-डरते

पुतला कभी बना रावण का
विकट ठाठ रच देते रण का
धनु-शर कसे राम-लक्ष्मण का

रूप मनोहर धरते

कभी ध्वस्त कर कृत्रिम लंका
बजवाते निज जय का डंका
फिर उर से लगकर, दुख, शंका

माँ के मन की, हरते

बाल-क्रीड़ा जब लव-कुश करते
स्वामी की सुधि कर सीता के नयन अश्रु से भरते