sita vanvaas
‘जहाँ जी चाहे सीता जाये’
बोले प्रभु लक्ष्मण से–‘अब वह मुझको मुँह न दिखाये
‘दुष्ट असुर से ठान लड़ाई
मैंने कुल की आन बचायी
पर जो पर घर में रह आयी
उसे कौन अपनाये!
‘अवध उसे जो ले जाऊँगा
अपनी हँसी न करवाऊँगा!
क्या उत्तर मैं दे पाऊँगा
यदि जग दोष लगाये!
चर्चा क्या न रहेगी छायी–
”जाने कैसे अवधि बितायी!
जो कंचन-मृग पर ललचायी
लंका उसे न भाये!”
जहाँ जी चाहे सीता जाये’
बोले प्रभु लक्ष्मण से–‘अब वह मुझको मुँह न दिखाये