sita vanvaas

‘देवर! अग्रिकुंड धधकाओ
सौंप मुझे पावक को अब यह कुल अपमान मिटाओ

‘देख रही है जनता सारी
एक-एक पल अब है भारी
प्रीति, प्रतीति, रीति यह न्यारी

सब जग को दिखलाओ

‘पौरुष की हो चुकी परीक्षा
दुष्टों ने पायी है शिक्षा
मुझको मिले न्याय की भिक्षा

अब वह युक्ति रचाओ’

सुन सीता के वचन सजल-दृग
बोले लक्ष्मण, चरणों से लग
‘फिरूँ अवध क्या मुँह ले प्रभु सँग

माँ! यह तो बतलाओ’

‘देवर! अग्निकुंड धधकाओ
सौंप मुझे पावक को अब यह कुल अपमान मिटाओ’