sita vanvaas

‘न ये संवाद जनकपुर जायें
नाथ! मुझे सब वहाँ आप की दासी ही बतलायें

‘क्या फिर दुगुनी व्यथा न होगी!
यदि अभियुक्त बनें अभियोगी!
मैंने तो भोंगी सो भोगी

आप न अश्रु बहायें

‘पूछेंगे जब वहाँ नारि-नर
‘अग्नि-परीक्षा भी देने पर
सीता क्‍यों दोषी?’’ तो उत्तर

क्या देंगे, बतलायें

‘दो दिन भी न कटे हैं सुख से
कहे नहीं चाहे कुछ मुख से
माँ शैय्या पकड़ेगी दुख से

पा ये नयी व्यथायें’

‘न ये संवाद जनकपुर जायें
नाथ! मुझे सब वहाँ आप की दासी ही बतलायें’