sita vanvaas

‘भले पावक को सौंप न पाये
क्यों न मुझे लंका में, देवर! भू-समाधि दे आये?

‘क्यों फिर यह दिन भाग्य दिखाता।
जननी का अंचल मिल जाता
पुत्री को न त्यागती माता

जग चाहे ठुकराये

‘मैं जीवित यदि अवध न आती
क्यों कोई उँगली उठ पाती!
प्रभु को यह चिंता न सताती–

‘मुझे फिरा क्‍यों लाये!’

कहना–‘ अब न दुखी हों मन में
मैं सुख से रह लूँगी वन में
उनके राजधर्म-पालन में

त्रुटि न कहीं रह जाये!

‘भले पावक को सौंप न पाये
क्‍यों न मुझे लंका में, देवर! भू-समाधि दे आये?!