sita vanvaas

बात अंगद को तनिक न भायी
वन को जाती सीता की छवि फिर-फिर पड़ी दिखाई

‘यह कैसी है प्रभु की माया!
क्यों जननी पर फिर दुख छाया!
इसीलिए था युद्ध रचाया!

  रावण पर जय पायी!’

झरझर बरस पड़े युग लोचन
‘कैसे मौन रहे सब गुरुजन!
महावीर ने भी पत्थर बन

     देखी यह निदुराई।

‘ऐसे तो न कभी थे स्वामी
माँ थी पदरेखा-अनुगामी
लक्ष्मण ने भी भर दी हामी

 यह दुर्मत न हटायी!’

बात अंगद को तनिक न भायी
वन को जाती सीता की छवि फिर-फिर पड़ी दिखाई