sita vanvaas

इंद्र की सभा रो पड़ी सारी
रावण-वध की यह परिणति देवों ने थी न विचारी

बोले सरस्वती से–‘माता!
क्यों ऐसा लिख गये विधाता।
हम से और न देखा जाता

सीता का दुख भारी

‘मिला राम को जय का टीका
पर सच में तो शाप सती का
काल बना रावण की श्री का

लंका कब थी हारी!

‘शाप न अब वह हमें जला दे
माँ! राघव की मति पलटा दे
सीता को वन से फिरवा दे

रख ले लाज हमारी’

इंद्र की सभा रो पड़ी सारी
रावण-वध की यह परिणति देवों ने थी न विचारी