sita vanvaas

अवध की शोभा उजड़ गयी
एक-एककर चले गये सब योद्धा जग-विजयी

नहीं काल से कोई जीता
सूनी सभा, सदन था रीता
कौन कहे, प्रभु पर जो बीता

पा नित व्यथा नयी !

यद्यपि प्रिया बिना अकुलाते
प्रभु ने राजधर्म के नाते
सब कुछ सहकर भी मुस्काते

काटे वर्ष कई

पर जब भी जी में यह आया
‘सीता ने मुझसे क्‍या पाया!’
रुला गयी प्राणों को छाया

गहन विषादमयी

अवध की शोभा उजड़ गयी
एक-एककर चले गये कुल योद्धा जग-विजयी