sita vanvaas

देख प्रभु-नयन अश्रु से छाये
रह न सके मारुति अपने अंतर की व्यथा दबाये

बोले, ‘यदि मैं आज्ञा पाऊँ
भू को चीर अतल में जाऊँ
माँ को मना अवध फिर लाऊँ

यम भी रोक न पाये

‘बल है अभी दास के तन में
काल-चक्र उलटा दे क्षण में
जननी को ले, नाथ! शरण में

आप विधाता आये

‘सुरगण भक्त रहे कहने को!
अमर बना मैं दुख सहने को!
धिक मेरे जीवित रहने को

यदि प्रभु मन अकुलाये’

देख प्रभु-नयन अश्रु से छाये
रह न सके मारुति अपने अंतर की व्यथा दबाये