sita vanvaas
नाथ! जब सरजू लेने आयी
क्या फिर बीते जीवन की स्मृति अंतर में लहरायी!
पिता-शोक, वन-मिलन भरत का
सीता-हरण, दौत्य हनुमत का
करके स्मरण असुर-वध व्रत का
लौटी फिर तरुणाई!
फिर से सहा अनुज-मूर्च्छा-दुख !
उगे अमित रावण-शिर सम्मुख!
गये भालु-कपि चरणों में झुक!
जय-ध्वनि पड़ी सुनाई!
अंतिम घड़ियों में प्रयाण की
डुबा अश्रु में व्यथा मान की
पुन: आ मिली प्रिया प्राण की
ज्यों जल की परछाँई!
नाथ! जब सरजू लेने आयी
क्या फिर बीते जीवन को स्मृति अंतर में लहरायी!