sita vanvaas

देख मुनि-आश्रम-छटा निराली
दंडकवन-स्मृति कर सीता ने शांति घड़ी भर पा ली

सरिता वही, वही गिरि-कानन
खग, मृग, विटप, बेलि मनभावन
किंतु कहाँ थे वे सुखमय क्षण!

वह पहली हरियाली!

अब वे कुसुम-कुंज, नद-निर्झर
और विकल करते थे अंतर
कौंध रही थी मानस-तट पर

प्रभु-छवि मुनिपटवाली

सोचा, ‘कहीं जनकपुर जाती
जननी क्‍या उर से न लगाती?
क्यों वन में दुहरा दुख पातीं

लिए भाग्यलिपि काली ?’

देख मुनि-आश्रम-छटा निराली
दंडकवन-सुधि कर सीता ने शांति घड़ी भर पा ली