sita vanvaas
देख आँसू प्रभु के नयनों में
रोते हुए विकल पुरवासी लिपट गए चरणों में
हुआ हमारे ही कारण सब
जाने क्यों अनीति सूझी तब!
नाथ! न और सती सीता अब
काटे आयु वनों में
दिया जिन्होंने माँ को लांछन
रक्खा केवल उनका ही मन!
देखा नहीं क्षोभ था, भगवन !
कितना प्रजाजनों में !
‘कथा कुमारों ने जो गायी
सुनकर घोर विकलता छायी
धो दें यह कलंक दुखदायी
स्वामी ! शेष क्षणों में’
देख आँसू प्रभु के नयनों में
रोते हुए विकल पुरवासी लिपट गए चरणों में