sita vanvaas

‘पुत्री! सूना भवन बसा दे
जाने के दिन आये अब तो मन की कसक मिटा दे

‘रानी बना अवध में लायी
मैं तुझको क्‍या सुख दे पायी!
कैसे कहूँ—‘शुभ घड़ी आयी

अब तू मान भुला दे!

‘लज्जित हूँ, क्यों बनकर भोली
मैंने तब थी जीभ न खोली!
राजा की जिद पूरी हो ली

उठ बेटी! मुस्का दे

“तेरे बिना राम दुख पाता
बहुओं को घर काटे खाता
जोड़े हाथ खड़े हैं भ्राता

चलने की आज्ञा दे!

‘पुत्री! सूना भवन बसा दे
जाने के दिन आये अब तो मन की कसक मिटा दे!