sita vanvaas
सती बैठी पद्मासन मारे
लक्ष्मण फिरे चिता से नतशिर जैसे रण में हारे
दर्शन को मुख-छवि अकलंका
उमड़ पड़ी शोकाकुल लंका
विकल भालु-कपि-अनी सशंका
रोये सहचर सारे
पर आश्चर्य! घेर कोमल तन
मातृ-अंक बन गया हुताशन
लपटें हुई शीत हिम-चन्दन
फूल बने अंगारे
प्रिया पितागृह से ज्यों आयी
प्रभु ने बायीं ओर बिठायी
कहा अनुज से–‘अब तो भाई!
दुःख मिट गये तुम्हारे!
सती बैठी पद्मासन मारे
लक्ष्मण फिरे चिता से नतशिर जैसे रण में हारे