sita vanvaas

कंठ मुनिशिष्यों के भर आये
बोले— ‘अब आगे की गाथा बनती नहीं सुनाये

प्रभु लंका से समर जीतकर
सीता-अनुज-सहित लौटे घर
रामराज्य छाया वसुधा पर

सब ने सब सुख पाये

“अग्नि स्नान भी किये पुनीता
पर क्या शांति पा सकी सीता!
ज्यों अभिषेक-महोत्सव बीता

फिर दुख के घन छाये

‘गुरुवर ने जो हमें सिखायी
अब तक वह लीला थी गायी
अब ये गीत, नृपति-हित, भाई

हम निज से रच लाये”

कंठ मुनिशिष्यों के भर आये
बोले— ‘अब आगे की गाथा बनती नहीं सुनाये