sita vanvaas

सभा में सन्नाटा था छाया
सभी मौन थे, कोई अपना मस्तक उठा न पाया

तब संकोच सती ने त्यागे
बोली–‘प्रजा क्षमा क्‍यों माँगे।
अग्नि-प्रवेश न उसके आगे

प्रभु ने था करवाया

पर रघुकुल की वधू सुहागिन
परित्यक्ता वन में काटे दिन
एक चूक का बहुत बड़ा ऋण

क्या मैंने न चुकाया!

‘यहाँ अवध का कुल समाज है
कहने में क्‍या मुझे लाज है।
जो त्रुटि कल थी वही आज है

अब क्‍यों जी अकुलाया!’

सभा में सन्नाटा था छाया
सभी मौन थे, कोई अपना मस्तक उठा न पाया