sita vanvaas
‘विजय रावण पर कैसे पायी!
क्या न सती के तप ने ही थी, प्रभु | बह विजय दिलायी !
‘शक्ति लगी जब लक्ष्मण-तन में
व्याकुल आप हुए थे रण में
क्या न अशोक तले उस क्षण में
सीता पड़ी दिखाई!
आँसू भरी वही छवि कातर
महाशक्ति का रूप बनाकर
नाथ! न क्या थी प्रत्यंचा पर
बाण चढ़ाती आयी!
‘सेना जो अजेय कहलायी
क्या उसने भी मात न खायी
सीता के तप से टकरायी
जब वह भी, रघुराई
‘विजय रावण पर कैसे पायी!
क्या न सती के तप ने ही थी, प्रभु | वह विजय दिलायी !