kitne jivan kitni baar
नाचते बीती सारी रात
फिर भी पहुँच न पायी तुझ तक मेरे मन की बात
कितनी बार भवों ने झुककर तीर सुनहला छोड़ा
कितनी बार विहँसकर मैंने सलज चिबुक भी मोड़ा
कितनी बार सजाया कोमल फूलों से निज गात
जब भी सम पर लाकर मैंने पग की ताल मिलायी
सबके मस्तक डोले, ग्रीवा तेरी डोल न पायी
रुची न अब तक तुझको मेरे प्राणों की सौगात
नाचते बीती सारी रात
फिर भी पहुँच न पायी तुझ तक मेरे मन की बात