कितने जीवन, कितनी बार_Kitne Jivan Kitni Baar
- अपना बानक आप बनाओ
- अपरिमित दया, दयामय ! तेरी
- अब कहाँ बसेरा अपना
- अब क्या माँगूँ आगे!
- अब तो ढहने लगे किनारे
- अब यह नौका फँसी भँवर में
- अब ये गीत तुम्हारे
- अंतर से मत जाना
- आईना चूर हुआ लगता है
- इतने ठाठ व्यर्थ ही बाँधे
- इसी को कहते हैं क्या जीना
- एक बस तुझसे बनी रहे
- ऐसे ही रह लूँगा
- ऋतु वसंत की आयी
- कस तो दिए प्राणों के तार
- कहाँ इस पुर के रहनेवाले!
- कहाँ जायेंगे सपने मन के
- कितने जीवन कितनी बार
- कितने बड़े हाथ हैं तेरे
- कितने बंधु गये उस पार!
- किसके लिए लिखूँ मैं?
- कैसे बजे बीन!
- कौन बैठा है मेरे मन में?
- गोरी! तेरा मन किसने छीना!
- जग में चलाचली के मेले
- जब तक सुख के दिन आते हैं
- जब भी नाम हमारा आये
- जहर सबको पीना पड़ता है
- जीवन तुझे समर्पित किया
- जीवन यों ही बीत गया
- तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है?
- तुम्हीं दुख में आड़े आते हो
- तू क्यों आँसू व्यर्थ बहाये!
- तूने जो बोये सो काटे
- तूने क्या खोया, क्या पाया!
- द्वार बंद थे तेरे
- दुःख यह किसके आगे रोऊँ?
- न जाने क्या होगा उस ओर?
- नहीं कभी भागूँगा जग से, सब कुछ सहन करूँगा
- नहीं यदि तू भी दया करेगा
- नहीं यदि तेरा ही मन माने
- नाचते बीती सारी रात
- पथ के अंतिम मोड़ पर
- प्रेम की तेरे आज परीक्षा
- प्यार यदि है तो आगे आओ
- बड़ी भीड़ है देव! तुम्हारे द्वार पर
- बात अधरों की हुई न पूरी
- भला इस जीवन का क्या अर्थ!
- मार्ग अनदेखा, लक्ष्य अजाना
- मुक्ति नहीं भक्ति चाहिए
- मुझे भुला मत देना
- मुझे भुला ही देना
- मेरा चित्र तुम्हारे कर में
- मैं फिर यहीं खिलूँगा
- मैं गीत लिखे जिस सुर में
- मैंने तुझको ही गाया है
- मैंने बरबस होंठ सिये थे
- मैंने मरु में केसर बोयी
- यदि हम सेवा में सुख पायें
- यद्यपि यह प्रभात की वेला
- राग नहीं जाता है
- रात तुम्हारे कर में
- संध्या की वेला
- समझो बस प्रवास ही झेला
- सपने मुझे बुलाने आये
- सातों सुर बोलेंगे
- सारी धरती डेरा अपना
- सुरों की धारा बहती जाती
- हम तो यही खेल खेलेंगे
- हमारे वे दिन बीत गये
- हम तो रँगे प्रेम के रँग में
- हमारी टूट गयी है डोर
- हमारे सपने बिखर गए
- हार नहीं मानूँगा
- हे प्रभु, सब अपराध हमारे क्षमा करो
- हो चुके अब वे खेल पुराने
- “गुलाबजी की कृति ’कितने जीवन, कितनी बार’ हिन्दी के आधुनिक गीत-साहित्य को संगीत से जोड़ने का सफल प्रयास है। अपनी प्रौढ़ता, सरलता एवं गहन भावानुभूति के कारण यह रचना हिन्दी-साहित्य की श्रेष्ठतम कृतियों में गिनी जायगी.”
-डॉ॰ शम्भुशरण सिन्हा (कॉमर्स कॉलेज, पटना)