बूँदें-जो मोती बन गयीं_Boonde Jo Moti Ban Gayee

  1. आमुख
  2. अधरों पर परिचित मुकान लिए
  3. अनंत महासागर में,
  4. अब जो मैं लिखता हूँ
  5. आँसू की कुछ बूँदें तो
  6. आओ, देवता के माध्यम से मिलें
  7. इस उड़ती हुई पहाड़ी तलहटी में ही तो
  8. इस बार कोयल को चुप ही रहने दो
  9. एक फूल को डाल पर कुम्हलाते हुए
  10. ओ उर्वशी ! क्या पुरुरवा का विलाप सुनकर
  11. ओ चारुशीले!
  12. ओ पिया! दुःख की घनी अँधेरी रातों में
  13. ओ पिया! मुझे फिर वैसा ही कर दे
  14. काग़ज़ की लिखावट
  15. किस अनजान नगर की अनचीन्हीं गलियों में
  16. कुछ गीत तो मैंने
  17. कोई कुछ भी कहे, नहीं मानूँगा
  18. कोयल से कह दो—
  19. जब तक तुम नहीं मिली थी
  20. जब मुझे जाना ही है तो
  21. जब मेरे वस्त्रों की चमक लुप्त हो चुकी है,
  22. जी करता है तुम्हारी अलकों से खेलता रहूँ
  23. जीवन की सार्थकता पाने में नहीं
  24. तुम कहीं भी जाकर छिप जाओ
  25. तुमने कहा था—
  26. तुम्हारी आँखों में चाँद सूरज से भी
  27. तुम्हारी निष्ठुरता से
  28. तुम्हारे साथ बिताये हुए क्षण की
  29. तू भी तो हाड़-मांस का पुतली है
  30. तू यह भली भाँति जान ले
  31. दीर्घ अभ्यास आवश्यक है
  32. धरती और आकाश के बीच की समस्त संपदा भी
  33. धुल धूसरित बालक जैसे रोते हुए
  34. प्रतिबिम्ब तो झील कि नील लहरों में
  35. प्रेम कभी मरता नहीं है
  36. फूलों से प्यार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
  37. मुझे अपने आत्मा की चिंता नहीं है
  38. मुझे तुम्हारे प्रेम ने पागल बना
  39. मुझे न तो बड़ा नाम चाहिए
  40. मुझे शब्द नहीं मिलते हैं,
  41. मुझे स्वीकार मत करना
  42. मेरी कविता को पढ़कर उसने कहा
  43. मेरी कविता में अपनी छाया देखकर
  44. मेरे और तुम्हारे बीच में यह तीसरा
  45. मेरे चारों ओर रंगीन
  46. मेरे लिए प्रतीक्षा मत करना
  47. मेरे शब्द होंठों पर आकर अटक गए हैं
  48. मैं तो केवल तुम्हीं को चाहता हूँ
  49. मैं दुहरा जीवन जीता हूँ
  50. मैं फिर भी चलता रहा हूँ
  51. मैं फिर भी यहाँ आऊँगा
  52. मैं वह नहीं हूँ
  53. मैंने अपना ह्रदय तुम्हें सौंप दिया है
  54. मैंने कितनी उमंगों से तेरे लिए
  55. मैंने तो बस तुम्हें ही प्यार किया है
  56. यदि किसी सागर-परिवेष्टित द्वीप पर
  57. यदि तुम्हारा जी चाहता है
  58. यदि तू कभी इस अरण्य में आयेगा
  59. यह कब कैसे घटित हुआ
  60. यह कैसी विवशता है
  61. यह सच है
  62. यों तो कितनी ही बार
  63. रूप का परायापन अब मुझे
  64. वह एक क्षण
  65. वह बात जो विदा के समय
  66. वाह ! गुलाबजी, वाह !
  67. विषकन्या का परिचय यही है
  68. शत-शत रूप-रँग-रेखाओं में
  69. हर कली के जीवन में एक ऐसा क्षण आता है
  70. हर विषपान के बाद मैं जीवित कैसे
  71. हर संध्या का एक नया नाम होना चाहिए

 

    • “बूँदें जो मोती बन गयीं’ ऐसी बूँदों का संकलन है जो मोती बन गयी हैं, इन कविताओं में संवेदना का नवोन्मेष बिंब-विधान की मौलिकता का आश्रय लेकर नूतन काव्य-शिल्प में व्यक्त हुआ है।”

    आचार्य विश्‍वनाथ सिंह