boonde jo moti ban gayee
जब तक तुम नहीं मिली थी
मैं कितना बेचैन रहता था।
मैं तब समझ ही नहीं पाता था
मुझे यह क्या हो गया है
हरदम कुछ कमी तो महसूस होती थी
पर जानता नहीं था कि क्या खो गया है
मुट्ठी में दबाये फूल की तरह
मेरा हृदय पसीज-पसीज कर बहता था
तुम मिली तो जैसे सफेद कागज पर
लाल स्याही से कुछ लिखा गया
स्वर और आलाप की जगह शब्द उभर आये
घुप अँधेरे में जैसे कोई मार्ग दिखा गया
वे सभी बातें सच्ची लगने लगीं
जिन्हें पहले कवि-कल्पना कहता था
परंतु तुमसे मिलने के बाद भी
क्यों मेरा दर्द वैसे का वैसा है
पहले यदि मन में काँटे-सा कसकता था
तो अब पोर-पोर में मधुर टीस जैसा है
प्राप्ति की विकलता कैसे सही जाय
अप्राप्ति की पीड़ा तो किसी तरह सहता था।
जब तक तुम नहीं मिली थी
मैं कितना बेचैन रहता था।