बूँदें-जो मोती बन गयीं_Boonde Jo Moti Ban Gayee
- आमुख
- अधरों पर परिचित मुकान लिए
- अनंत महासागर में,
- अब जो मैं लिखता हूँ
- आँसू की कुछ बूँदें तो
- आओ, देवता के माध्यम से मिलें
- इस उड़ती हुई पहाड़ी तलहटी में ही तो
- इस बार कोयल को चुप ही रहने दो
- एक फूल को डाल पर कुम्हलाते हुए
- ओ उर्वशी ! क्या पुरुरवा का विलाप सुनकर
- ओ चारुशीले!
- ओ पिया! दुःख की घनी अँधेरी रातों में
- ओ पिया! मुझे फिर वैसा ही कर दे
- काग़ज़ की लिखावट
- किस अनजान नगर की अनचीन्हीं गलियों में
- कुछ गीत तो मैंने
- कोई कुछ भी कहे, नहीं मानूँगा
- कोयल से कह दो—
- जब तक तुम नहीं मिली थी
- जब मुझे जाना ही है तो
- जब मेरे वस्त्रों की चमक लुप्त हो चुकी है,
- जी करता है तुम्हारी अलकों से खेलता रहूँ
- जीवन की सार्थकता पाने में नहीं
- तुम कहीं भी जाकर छिप जाओ
- तुमने कहा था—
- तुम्हारी आँखों में चाँद सूरज से भी
- तुम्हारी निष्ठुरता से
- तुम्हारे साथ बिताये हुए क्षण की
- तू भी तो हाड़-मांस का पुतली है
- तू यह भली भाँति जान ले
- दीर्घ अभ्यास आवश्यक है
- धरती और आकाश के बीच की समस्त संपदा भी
- धुल धूसरित बालक जैसे रोते हुए
- प्रतिबिम्ब तो झील कि नील लहरों में
- प्रेम कभी मरता नहीं है
- फूलों से प्यार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
- मुझे अपने आत्मा की चिंता नहीं है
- मुझे तुम्हारे प्रेम ने पागल बना
- मुझे न तो बड़ा नाम चाहिए
- मुझे शब्द नहीं मिलते हैं,
- मुझे स्वीकार मत करना
- मेरी कविता को पढ़कर उसने कहा
- मेरी कविता में अपनी छाया देखकर
- मेरे और तुम्हारे बीच में यह तीसरा
- मेरे चारों ओर रंगीन
- मेरे लिए प्रतीक्षा मत करना
- मेरे शब्द होंठों पर आकर अटक गए हैं
- मैं तो केवल तुम्हीं को चाहता हूँ
- मैं दुहरा जीवन जीता हूँ
- मैं फिर भी चलता रहा हूँ
- मैं फिर भी यहाँ आऊँगा
- मैं वह नहीं हूँ
- मैंने अपना ह्रदय तुम्हें सौंप दिया है
- मैंने कितनी उमंगों से तेरे लिए
- मैंने तो बस तुम्हें ही प्यार किया है
- यदि किसी सागर-परिवेष्टित द्वीप पर
- यदि तुम्हारा जी चाहता है
- यदि तू कभी इस अरण्य में आयेगा
- यह कब कैसे घटित हुआ
- यह कैसी विवशता है
- यह सच है
- यों तो कितनी ही बार
- रूप का परायापन अब मुझे
- वह एक क्षण
- वह बात जो विदा के समय
- वाह ! गुलाबजी, वाह !
- विषकन्या का परिचय यही है
- शत-शत रूप-रँग-रेखाओं में
- हर कली के जीवन में एक ऐसा क्षण आता है
- हर विषपान के बाद मैं जीवित कैसे
- हर संध्या का एक नया नाम होना चाहिए
-
- “बूँदें जो मोती बन गयीं’ ऐसी बूँदों का संकलन है जो मोती बन गयी हैं, इन कविताओं में संवेदना का नवोन्मेष बिंब-विधान की मौलिकता का आश्रय लेकर नूतन काव्य-शिल्प में व्यक्त हुआ है।”
–आचार्य विश्वनाथ सिंह