boonde jo moti ban gayee

मेरे शब्द ओंठों पर आकर अटक गये हैं,
और मेरे प्राण फूलों की घाटियों में भटक गये हैं।
मिलने को आतुर चंपई भुज-लतायें,

कजरारे नयनों के श्याम भ्रमर,

रजनीगंधा-सी महकती हुई साँसें,

गुलाब की कली-से अरुणाभ अधर,

वसंत-सा गदराया तुम्हारा रूप

कितना अलौकिक, कितना अदभुत है!

सब कुछ जैसे अनदेखा है, अनजाना है, अश्रुत है,
पर मुझे तो सुगंध का एक झोंका ही बहुत है।