कितने जीवन, कितनी बार_Kitne Jivan Kitni Baar

  1. अपना बानक आप बनाओ 
  2. अपरिमित दया, दयामय ! तेरी  
  3. अब कहाँ बसेरा अपना 
  4. अब क्या माँगूँ आगे! 
  5. अब तो ढहने लगे किनारे 
  6. अब यह नौका फँसी भँवर में 
  7. अब ये गीत तुम्हारे   
  8. अंतर से मत जाना 
  9. आईना चूर हुआ लगता है 
  10. इतने ठाठ व्यर्थ ही बाँधे 
  11. इसी को कहते हैं क्या जीना 
  12. एक बस तुझसे बनी रहे 
  13. ऐसे ही रह लूँगा 
  14. ऋतु वसंत की आयी 
  15. कस तो दिए प्राणों के तार 
  16. कहाँ इस पुर के रहनेवाले! 
  17. कहाँ जायेंगे सपने मन के 
  18. कितने जीवन कितनी बार 
  19. कितने बड़े हाथ हैं तेरे 
  20. कितने बंधु गये उस पार!  
  21. किसके लिए लिखूँ मैं? 
  22. कैसे बजे बीन! 
  23. कौन बैठा है मेरे मन में? 
  24. गोरी! तेरा मन किसने छीना!  
  25. जग में चलाचली के मेले 
  26. जब तक सुख के दिन आते हैं 
  27. जब भी नाम हमारा आये 
  28. जहर सबको पीना पड़ता है 
  29. जीवन तुझे समर्पित किया 
  30. जीवन यों ही बीत गया  
  31. तुम हो मेरे पास निरंतर फिर यह अंतर क्या है? 
  32. तुम्हीं दुख में आड़े आते हो 
  33. तू क्यों आँसू व्यर्थ बहाये! 
  34. तूने जो बोये सो काटे 
  35. तूने क्या खोया, क्या पाया! 
  36. द्वार बंद थे तेरे 
  37. दुःख यह किसके आगे रोऊँ? 
  38. न जाने क्या होगा उस ओर? 
  39. नहीं कभी भागूँगा जग से, सब कुछ सहन करूँगा 
  40. नहीं यदि तू भी दया करेगा 
  41. नहीं यदि तेरा ही मन माने 
  42. नाचते बीती सारी रात 
  43. पथ के अंतिम मोड़ पर 
  44. प्रेम की तेरे आज परीक्षा 
  45. प्यार यदि है तो आगे आओ 
  46. बड़ी भीड़ है देव! तुम्हारे द्वार पर 
  47. बात अधरों की हुई न पूरी 
  48. भला इस जीवन का क्या अर्थ! 
  49. मार्ग अनदेखा, लक्ष्य अजाना  
  50. मुक्ति नहीं भक्ति चाहिए 
  51. मुझे भुला मत देना 
  52. मुझे भुला ही देना 
  53. मेरा चित्र तुम्हारे कर में 
  54. मैं फिर यहीं खिलूँगा 
  55. मैं गीत लिखे जिस सुर में 
  56. मैंने तुझको ही गाया है 
  57. मैंने बरबस होंठ सिये थे 
  58. मैंने मरु में केसर बोयी  
  59. यदि हम सेवा में सुख पायें 
  60. यद्यपि यह प्रभात की वेला 
  61. राग नहीं जाता है   
  62. रात तुम्हारे कर में  
  63. संध्या की वेला   
  64. समझो बस प्रवास ही झेला 
  65. सपने मुझे बुलाने आये 
  66. सातों सुर बोलेंगे 
  67. सारी धरती डेरा अपना 
  68. सुरों की धारा बहती जाती  
  69. हम तो यही खेल खेलेंगे 
  70. हमारे वे दिन बीत गये   
  71. हम तो रँगे प्रेम के रँग में 
  72. हमारी टूट गयी है डोर 
  73. हमारे सपने बिखर गए 
  74. हार नहीं मानूँगा   
  75. हे प्रभु, सब अपराध हमारे क्षमा करो  
  76. हो चुके अब वे खेल पुराने

 

  • “गुलाबजी की कृति ’कितने जीवन, कितनी बार’ हिन्दी के आधुनिक गीत-साहित्य को संगीत से जोड़ने का सफल प्रयास है। अपनी प्रौढ़ता, सरलता एवं गहन भावानुभूति के कारण यह रचना हिन्दी-साहित्य की श्रेष्‍ठतम कृतियों में गिनी जायगी.”

-डॉ॰ शम्भुशरण सिन्हा (कॉमर्स कॉलेज, पटना)