kitne jivan kitni baar
बड़ी भीड़ है, देव! तुम्हारे द्वार पर
मैं बैठा हूँ एक ओर थक-हारकर
यहाँ प्रसाद भरी थाली कब आती है!
कभी आरती की लौ पहुँच न पाती है
मुझे दूर ही दूर ठेलती जाती है
बढ़ती भक्त-मंडली जय-जयकार कर
रीति सदा से माना यही जगत की है
इसने ग्रीवा बल के आगे नत की है
पर जो चौखट दीन-दुखी-श्री हत की है
रहे वहाँ भी कोई क्यों मन मारकर!
बड़ी भीड़ है, देव! तुम्हारे द्वार पर
मैं बैठा हूँ एक ओर थक-हारकर