kitne jivan kitni baar

मैं फिर यहीं खिलूँगा
फिर पहले-सा इसी वृंत पर पत्तों बीच हिलूँगा

माना यह पतझर की वेला
अब न कहीं रंगों का मेला
लेकर किंतु रूप अलबेला

कल फिर यहीं मिलूँगा

मरण भले ही मार्ग भुला दे
किंतु असंभव, मुझे मिटा दे
जो फिर तुझसे मिलन करा दे

मैं वह आकृति लूँगा

मैं फिर यहीं खिलूँगा
फिर पहले-सा इसी वृंत पर पत्तों बीच हिलूँगा