kitne jivan kitni baar

मुझे भुला मत देना
जैसे पत रख ली है अब तक, आगे भी रख लेना

जब झंझा का वेग प्रबल हो
भरा चतुर्दिक जल ही जल हो
भँवर बढ़ी आती प्रतिपल हो

डगमग नौका खेना

मोह मिटाकर नश्वर तन का
यह विश्वास जगाना मन का
‘क्या कर लेगी भानु-किरण का

तम की बढ़ती सेना!’

मुझे भुला मत देना
जैसे पत रख ली है अब तक, आगे भी रख लेना