kitne jivan kitni baar

ओ गोरी! तेरा मन किसने छीना!
और कहीं पर तार बँधे हैं, और कहीं है वीणा

अंग-अंग बजते हों सुर में
तान मधुर भी हो नूपुर में
किन्तु और ही धुन है उर में

ताल-छंद-लय-हीना

तू तो रँगी श्याम के रँग में
पातिव्रत्य निभे क्या जग में!
सौ मन की साँकल हो पग में

पड़े जहर भी पीना

ओ गोरी! तेरा मन किसने छीना!
और कहीं पर तार बँधे हैं, और कहीं है वीणा