kitne jivan kitni baar

मेरा चित्र तुम्हारे कर में
नयी-नयी आकृति लेगा ज्यों गीत बदलते स्वर में

पहले निज प्रतिछवि देखोगी
तब अपना प्रिय कवि देखोगी
फिर संध्या का रवि देखोगी

   मेघ घिरे अंबर में

तुम मेरी कवितायें पढ़ना
उनसे ही मेरी छवि गढ़ना
शब्दों की चौखट में मढ़ना

मुझको निज अंतर में

मेरा चित्र तुम्हारे कर में
नयी-नयी आकृति लेगा ज्यों गीत बदलते स्वर में