kitne jivan kitni baar
कैसे बजे बीन!
दिन-दिन दीन, दिन-दिन दीन
चिर-आस्था-विश्वास-रहित मैं सुख-भोगों में लीन
चाह रहा बढ़कर सरस्वती-कंठ-हार लूँ छीन
मोह-मलिन-मन, सतत स्वार्थ-रत, त्याग-तपस्या-हीन
कैसे पहुँचूँ तुझ तक लेकर ध्वनियाँ दुर्बल, क्षीण
शिथिल उँगलियाँ, प्राण कंठ पर आकर हैं आसीन
और बचे हैं सम्मुख अब श्रोता केवल दो-तीन
कैसे बजे बीन!
दिन-दिन दीन, दिन-दिन दीन