kitne jivan kitni baar
कहाँ इस पुर के रहने वाले !
सन्नाटा हर ओर, जड़े हैं द्वार-द्वार पर ताले
हाट-बाट वीरान, रोकते पंथ मकड़ी के जाले
चूहों, गिलहरियों के दल हैं घर-घर डेरा डाले
फूटे घट, छूटे पट-भूषण, टूटे, लुढ़के प्याले
राजसभाओं की साक्षी हैं कुछ ढहती दीवालें
कौन मुझे इस यम-नगरी से बाहर खींच निकाले?
सूझ न पाता पथ आगे का, अब कुल राम-हवाले
कहाँ इस पुर के रहने वाले !
सन्नाटा हर ओर, जड़े हैं द्वार-द्वार पर ताले