kitne jivan kitni baar

कहाँ जायँगे सपने मन के
जब हम बाहर निकल जायँगे द्वार खोलकर तन के !

सपने तो तब भी होंगे पर मन भी क्‍या तब होगा!
कहाँ रहेगा वह कुल अनुभव जो हमने है भोगा!

कैसे उसे देख पायेंगे तब हम बिना नयन के!

संभव है तन के मिटते ही यह मन भी मिट जाये
संभव है इन सपनों का अस्तित्व न तब रह पाये

संभव है तब और नये ही रूप मिलें जीवन के

कहाँ जायेंगे सपने मन के
जब हम बाहर निकल जायँगे द्वार खोलकर तन के !