kitne jivan kitni baar
हो चुके अब वे खेल पुराने
जिनके चारों ओर बुने थे हमने ताने-बाने
संध्या से ही जब मन मेरा
द्वारनिकट डाले था घेरा
और प्रतीक्षाकुल मुख तेरा
लगता था मुस्काने
मैं जो मन-ही-मन कहता था
वह तुझसे न छिपा रहता था
दृग के कोनों से बहता था
भाव मधुर अनजाने
इसी तरह सौ बार भुलाई
जग वियोग-वेला थी आयी
चितवन एक छिपी, ललचाई
देती थी ज्यों तानें
हो चुके अब वे खेल पुराने
जिनके चारों ओर बुने थे हमने ताने-बाने