boonde jo moti ban gayee

रूप का परायापन अब मुझे खिन्‍न नहीं करता है,
कोई भी बाहरी व्यवधान तुमसे भिन्न नहीं करता है,
माना कि नदी के दो-किनारों-से
हम आपस में कभी नहीं मिलते हैं,
पर हमारी अनुभूति की धारा तो एक ही है,
तुम्हारी भावना के पुष्प तो सदा मेरे ही लिये खिलते हैं।