boonde jo moti ban gayee
यों तो कितनी ही बार
मैं तुम्हारे प्राणों के तीर पर आया हूँ,
कितनी ही बार तुम्हारे रूप की चाँदनी में नहाया हूँ,
पर वे रातें जो अनगायी रह गयीं,
अंजलि के फूलों-सी काल के प्रवाह में बह गयीं।
उनका बस वही अंश शेष है
जो शब्दों में बाँध पाया हूँ।
अधरों का स्वाद,
साँसों की सुगंध,
चितवनों का बाँकपन,
चाहा तो यह था कि तुम्हारी प्रत्येक भंगिमा को
कोई नवीन आयाम दे दूँ,
प्रेम की हर अनुभूति को
कोई नया नाम दे दूँ,
पर भाषा की एक सीमा होती है
आँसू की जो बूँद धरती पर जा गिरी
वह पानी बनकर बह गयी,
जो शब्दों की सीपी में पहुँच सकी,
केवल वही मोती है।