hum to gaa kar mukt huye
अचरज मुझको, कैसे तुझ तक करुण पुकार गयी थी
मैं मँझधार रहा पर मेरी ध्वनि उस पार गयी थी
यदि यह नहीं हुआ तो कैसे तूने हाथ बढ़ाया
सागर में बह रहे कीट को तट से पुनः लगाया
जब बहते-बहते हिम्मत भी हिम्मत हार गयी थी
कोटि-कोटि ब्रह्मांड जहाँ क्षण-क्षण बनते मिट जाते
वहाँ एक कृमि के क्रंदन सुनने में कैसे आते?
कैसे मेरी दीन याचना तेरे द्वार गयी थी?
अचरज मुझको, कैसे तुझ तक करुण पुकार गयी थी
मैं मँझधार रहा पर मेरी ध्वनि उस पार गयी थी