हम तो गा कर मुक्त हुए_Hum To Gaa Kar Mukt Huye

  1. अब इस शेष विदा के क्षण में 
  2. अब कुल राम हवाले 
  3. अचरज मुझको कैसे तुझ तक करुण पुकार गयी थी 
  4. अब यह खेल आप ही खेलो 
  5. अब यह ध्वजा कौन पकड़ेगा? 
  6. अयि सघन वन कुन्तले  
  7. अक्षय है भण्डार तेरा 
  8. इस तट पर ठहरा है कोई उस तट पर ठहरा है 
  9. ओ सहचर अनजाने! 
  10. अन्धकार,  
  11. कभी फिर होगा मिलन हमारा? 
  12. कवि के मोहक वेश में 
  13. कितनी भूलें, नाथ! गिनाऊँ! 
  14. कुछ भी और न लूँगा 
  15. कुछ भी बदले में नहीं लेना है 
  16. कोई साथ न होगा 
  17. कोयल की कुहक का यहीं अंत है  
  18. क्यों तू भेजकर समझे, तेरा काम हो गया पूरा! 
  19. कोयल पंचम सुर में बोली  
  20. कौन अब सुनेगा ये गीत!  
  21. कौन-सी पहचान होगी?  
  22. गाये जो ये गीत बैठकर मैंने तरु की डाल पर     
  23. गीत का जीवन कितना है! 
  24. गीत में आँसू ही भाता है 
  25. गीत ये गूंजेंगे उर-उर में                      
  26. चाँद को चाहे रहे जिस धाम, रहने दो 
  27. चिंता किस-किस की करिये !  
  28. चिंता नहीं फूल जो गुँथकर माला में न गले तक पहुँचा 
  29. जब भी कलम हाथ से छोड़ी 
  30. जाने कौन व्यथा जीवन की! 
  31. जीवन तो केवल प्रवाह है  
  32. जिस दिन नीरव होगी वीणा 
  33. जिस क्षण चलने की वेला हो  
  34. नहीं कहीं विश्राम 
  35. निर्जन यमुना-तट से 
  36. पथ का छोर कहाँ है? 
  37. पल-पल अंधकार बढ़ता है 
  38. पल में धोकर साफ कर सकूँ, ऐसा ह्रदय दिया होता 
  39. पापिनी ईर्ष्या डूब मरे 
  40. पाँव हम तेरे पकड़े रहे 
  41. पास रहकर भी कितनी दूरी! 
  42. प्रेम करके हम तो पछताये 
  43. फेर लो ये सुगंधमय साँसें 
  44. बरसो हे अंबर के दानी   
  45. मंगल साज सजे 
  46. मन! जान रहा है जब तू, जो भी पाए खोना है 
  47. मेरी वीणा, तान तुम्हारी 
  48. मेरे जीवन-स्वामी 
  49. मैं आँधी का तिनका  
  50. मैने क्यों पाला यह रोग! 
  51. मैंने दर्पण तोड़ दिया है  
  52. मैंने वंशी नहीं बजायी  
  53. मैंने सातों सुर साधे हैं   
  54. मोल नहीं लूँगा इन क्षणों का 
  55. यह रत्नों का हार किसे पहनाऊँ? 
  56. ये वासंती बेलें 
  57. रागिनी यह घर-घर गूँजेगी 
  58. श्याम पुतलियाँ चमकीं 
  59. सब कुछ छोड़ चला बनजारा 
  60. सब कुछ तो हो चुका समर्पित 
  61. सारी भव-व्याधियों से परे 
  62. हम तो गाकर मुक्त हुए 
  63. हम तो नाव डुबा कर आये 
  64. हमारी वेला बीत चुकी है 
  • “गुलाबजी की कृति ’हम तो गाकर मुक्‍त हुए’ ने समसामयिक हिन्दी-साहित्य को शाश्‍वत भाव-विभूति प्रदान की है।”

-डॉ कुँवर चन्द्रप्रकाश सिंह (पू. अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मगध वि. विद्यालय)