hum to gaa kar mukt huye
पाँव हम तेरे पकड़े रहें
यद्यपि जग के विविध प्रलोभन पीछे पड़े रहे
एक-एक कर छोड़ रहे थे संगी-साथी
आँखों के आगे दुनिया थी भागी जाती
पर हम तो अविचल इस जलते घर में खड़े रहे
तू ही बोला था, कोई निज धर्म न छोड़े
करता रहे काम अपना, फल से मुँह मोड़े
अंतिम दम तक हम तो इसी आन पर अड़े रहे
पाँव हम तेरे पकड़े रहें
यद्यपि जग के विविध प्रलोभन पीछे पड़े रहे