hum to gaa kar mukt huye

अब कुल रामहवाले
डाली से टूटा जो पत्ता उसको कौन सँभाले!

ऊँचे कुल में जन्म लिया था
छककर मधुरस पान किया था
कितना हो निश्चिंत जिया था
जाने इस झंझा ने आकर कब के बैर निकाले!

कहाँ आज फूलों के मेले!
वे शिशु-विहग साथ जो खेले!
अब जाना है दूर अकेले
आया ऐसा समय, पड़ गये प्राणों के भी लाले

बोली जननी देख बिछुड़ते
प्रिय सुत को भू की दिशि मुड़ते
थक जाना जब उड़ते-उड़ते
आना मेरे पास लौटकर फिर, ओ जानेवाले !’

अब कुल रामहवाले
डाली से टूटा जो पत्ता उसको कौन सँभाले!

सितम्बर 88