hum to gaa kar mukt huye

मैंने क्‍यों पाला यह रोग!
प्यार किया था यदि, रहना था मौन, साध कर योग

मिलना वह भी चार घड़ी का नदी-नाव-संजोग
पता न था, ऐसे भी फिर तड़पा करते हैं लोग
जीने के साधन हैं सौ-सौ, हैं सारे सुख-भोग

पर सुख को दुख से भर जाता है यह निठुर वियोग
आज लगा ले जग मुझ पर भावुकता का अभियोग
हृदय चीर कल देख सकेगा, सच था या था ढोंग

मैंने क्‍यों पाला यह रोग!
प्यार किया था यदि, रहना था मौन, साध कर योग

मार्च 87