hum to gaa kar mukt huye

चाँद को चाहे रहे जिस धाम, रहने दो
चाँदनी को बस हमारे नाम रहने दो

कल्पना के सप्त रंगों में सतत ढलता
प्यार है अच्छा कि जो मन में रहे पलता

प्यार अंतर का सदा गुमनाम रहने दो

बाँध सकता कौन बिजली को भुजाओं में
रूप का आलोक फैला है दिशाओं में

है मुझे तो बस उसी से काम, रहने दो

आयु का सूरज भले ढलता चला जाये
प्रेम के पथ का पथिक चलता चला जाये

प्राण में यह पीर आठों याम रहने दो

चाँद को चाहे रहे जिस धाम, रहने दो
चाँदनी को बस हमारे नाम रहने दो

अक्तूबर 86