hum to gaa kar mukt huye

प्रेम करके हम तो पछताये
सारी आयु रहे चातक-से नभ पर आँख गड़ाये

संयम, ज्ञान, बुद्धि के कितने तंत्र-मंत्र अपनाये
पर उन स्मित नयनों के आगे कोई काम न आये
मन की बात रही मन ही में, कभी न मुँह पर लाये
बैद विचारा क्‍या कर ले जब रोगी रोग छिपाये।
यद्यपि अवसर बीत चुका अब, सुमन-हार कुम्हलाये
जी करता है, एक बार ही कोई गले लगाये

प्रेम करके हम तो पछताये
सारी आयु रहे चातक-से नभ पर आँख गड़ाये

अक्तूबर 86