hum to gaa kar mukt huye

जीवन तो केवल प्रवाह है

सलिल नहीं है यह न लहर है
झंझा नहीं, न बुदबुद भर है
इन सबसे जो हुई मुखर है
एक सतत अव्यक्त चाह है

यह जो ‘मैं’ बन मुझसे चिपटा
यह भी एक वसन है लिपटा
इस छोटे से तन में सिमटा
महासिंधु अविगत, अथाह है
जीवन तो केवल प्रवाह है

Aug 86