hum to gaa kar mukt huye

फेर लो ये सुगंधमय साँसें
उर में धँसी, खींच लो अपने स्मित नयनों की गाँसें

माना, दोनों ओर ललक है
अंग-अंग में भरी कसक है
आज मिलन जिस सीमा तक है
किंतु प्रेम की धारायें होने दो भिन्‍न वहाँ से

और तनिक-सी भवें तान लो
कुल मेरा ही दोष जान लो
अपने को अनजान मान लो
लौट रहे जो इस सीमा से हम प्यासे के प्यासे

फेर लो ये सुगंधमय साँसें
डर में धँसी, खींच लो अपने स्मित नयनों की गाँसें

सितंबर 86