hum to gaa kar mukt huye
गीत में आँसू ही भाता है
शब्दों की सीपी में आँसू मोती बन जाता है
मैंने अपने स्वर में दी है पीड़ा को ही वाणी
जल-रेखाओं से अंकित है मेरी रामकहानी
जीवन की हर गति पर मुझको रोना ही आता है
कितनी क्षणिक, भीत, आशंकित हैं यह सुख की क्रीड़ा
पग-पग पर है मिली यहाँ दारुण वियोग की पीड़ा
तान व्यथा की ही उठती जब भी कोई गाता है
आज देखकर यह बंकिम स्मिति दृगकोरों में ठहरी
प्रिये! टीसती है अंतर में कसक और भी गहरी
आह! क्षण-स्थायी कितना दो हृदयों का नाता है!
गीत में आँसू ही भाता है।
शब्दों की सीपी में आँसू मोती बन जाता है
फरवरी 87