hum to gaa kar mukt huye
गीत का जीवन कितना है!
भरे हुए भादों के नद में बुदबुद जितना है
कुछ तो यहाँ ठहरते, कविवर! यदि प्रबंध तुम लिखते
विस्तृत मानसरोवर जैसे तृषातुरों को दिखते
तनिक अधर छू सके गीत-रस का तो बस इतना है
प्रिय-वियोग की व्यथा कि स्पंदन किसी अजान लहर का
मधुर मिलन में भी इसको सुख है बस चुंबन भर का
ज्यों मधु के प्याले का कर छूते ही रितना है
गीत का जीवन कितना है!
भरे हुए भादों के नद में बुदबुद जितना है
अप्रैल 87