hum to gaa kar mukt huye
जिस क्षण चलने की वेला हो
गति को रोके हुए न शत-शत स्मृतियों का मेला हो
ज्योति रहे या रहे अँधेरा
तनिक न व्याकुल हो मन मेरा
सिर पर रहे हाथ बस तेरा
जग की अवहेला हो
आये मधुर सुरभि का झोंका
पल में मोह मिटे प्राणों का
जैसे एक खेल गुड़ियों का
जीवन भर खेला हो
जिस क्षण चलने की वेला हो
गति को रोके हुए न शत-शत स्मृतियों का मेला हो