hum to gaa kar mukt huye

नहीं कहीं विश्राम
किस चक्कर में डाल दिया है तूने, मेरे राम!

चलना ही चलना निशि-वासर
आँधी हो या बरसें पत्थर
इतना बड़ा बोझ कन्धों पर

   और न तनिक विराम!

सम्मुख पाकर साँझ उतरती
इच्छा जब रुकने को करती
तुरत बता देती यह धरती

नये-नये सौ काम

माना बहुत सत्य, शिव, सुन्दर
पहुँच सकेंगे पर चरणों पर
भेज रहा हूँ जो लिख-लिखकर

मैं ये तुझे प्रणाम?

नहीं कहीं विश्राम
किस चक्कर में डाल दिया है तूने, मेरे राम!