hum to gaa kar mukt huye
क्यों तू मुझे भेजकर समझे तेरा काम हो गया पूरा!
मैं न लौटकर आऊँ जब तक, सदा रहेगा खेल अधूरा!
है अभिनय यदि रटा-रटाया, मेरा इसमें दोष कहाँ है!
बुरा-भला क्या, जब सब कुछ तू, जो जिस क्षण, जिस तरह, जहाँ है!
तेरी ही मर्जी थी, पहनूँ राजवसन या लूँ तंबूरा
पर यदि मुझे मंच पर लाकर तूने धागा तोड़ दिया है
जो जी चाहे, करूँ मुझे अपनी इच्छा पर छोड़ दिया है
तो भी कैसे जान सकूँ मैं, कौन अमृत है, कौन धतूरा!
क्यों तू मुझे भेजकर समझे तेरा काम हो गया पूरा!
मैं न लौटकर आऊँ जब तक, सदा रहेगा खेल अधूरा!